दोहे
दोहा सृजन(त्रिकल द्विकल चौकल मिश्रित संयोजन पर)
३+३+२+३+२=१३
४+४+३+२=१३
३+३+२+३=११
४+४+३=११
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गुरुवर ज्ञानी जो मिले, स्वामी रामानन्द।
जीवन पावन सीख दी, गढ़कर दोहे छंद॥
हृदय परम सुख धाम है, जहाँ बसे हरि नाम।
हरते चिन्ता आप ही, बनते बिगड़े काम॥
अद्भुत अनुपम सीख से, कुटिल नीति का अन्त।
सब जन हित की कामना, सच्चे पक्के सन्त॥
प्रेम धर्म के जोड़ से, सजे ईश दरबार।
द्वैष त्याग के भाव में,मिले जगत का सार॥
मदद करो हर जीव की,जान प्रभो का रूप।
बसता मानव वेष में, अन्तर भाव अनूप॥
माया छल का नाम है, चले नहीं वह संग।
धन से सबको तोलती,रिश्ते नाते भंग॥
रीति नीति सब बोझ है, जकड़े सब जंजीर।
ढोंग सोच के गर्त में, सहता मानुष पीर॥
कूप अंध पाखण्ड में, भरता जाये पाप।
घातक बनती पीर को, झेले मानुष आप॥
जीव जगत की राह है, जीवन का आधार।
राम राम प्रिय शब्द है, सकल ज्ञान संसार॥
शीला सिंह बिलासपुर हिमाचल प्रदेश🙏