दोहे
राधा-कृष्ण
श्याम अधर वंशी सजे, मोर मुकुट अभिराम।
राधा बनवारी भई, रास- रंग सुखधाम।।
प्रेम रंग मोहन रमे, लगा प्रेम मन रोग ।
प्रेम राग वंशी जपे, रुचे न दूजा भोग।।
बिन राधा मोहन नहीं ,मोहन राधा नाम।
राधा-मोहन मिल बना, अमर प्रेम का धाम।।
यमुना तट गोपी खड़ीं, मोहन रचते रास।
राधा माधवमय हुईं, व्यापित मन उल्लास।।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी (उ. प्र.)