#दोहे
अधर-सुधा-रस पान कर , हो जाँऊँ मदहोश।
आलिंगन के बंध में , भरा नेह का जोश।।
चिंताओं से दूर कर , मन को रखे सहेज।
प्रेम सुहागे-सा लगे , मन-कंचन पर तेज।।
प्राणप्रिये नैनों लिए , सिंधु सरिस पहचान।
मस्ती-मोती से भरे , खोज़ूँ बना सुजान।।
मृगनयनी बन खींचती , माया छल से ध्यान।
आकर्षण के फेर में , मन निज से अनजान।।
लालच के मद में मरा , अंतर भरा अज्ञान।
अंत समय रोता रहा , हँसा काल बलवान।।
मृदु भावों को उर लिए , आई उर संसार।
रंग-रंग से मिल हुआ , रंगोली घर द्वार।।
तृप्त हृदय हों प्रेम से , बंधन खिलें अपार।
सुर लय संगम से मधुर , नग़मा सदाबहार।।
#आर.एस.’प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित