दोहे
१-
माता वीणावादिनी, गणनायक आराध्य।
बीज मंत्र दो ज्ञान के, फूटे अंकुर काव्य।।
२-
हरिये दुख संताप को, जीवन हो आसान।
हम हैं आश्रित आपके, हे प्रभु! रखना ध्यान।।
३-
लाभ-हानि प्रभु हाथ में, रे मन चिंता छोड़।
सुख-दुख से प्रीतम वही, करते हैं गँठजोड़।।
४-
कल के नेता ठीक , अब के नेता चोर।
लूट रहे हैं देश को, सभी लगाए जोर।।
५-
मरते दम तक है यही, हे प्रभु! एक मुराद।
दुनिया में अपना रहे, भारत ज़िंदाबाद।।
६-
दूर दूर तक दिख रही, घनी अमावस रात।
विपदाओं के दंश से, छलनी होता गात।।
७-
प्रभु के दर्शन जब हुए, मन के खुले कपाट।
अर्जुन जागे मोह से, लख कर रूप विराट।।
८-
पति पत्नी में हो गया, दंगल महा विराट।
पत्नी की बेलन चली, पकड़ी पति ने खाट।।
९-
मँहगाई ने धर लिया, ऐसा रूप विराट।
जन-जन की प्रीतम यहाँ, खड़ी हो गई खाट।।
१०-
धैर्य, शील, संयम,क्षमा, और विनम्र विचार।
सज्जनता के पाँच ये, गुण होते आधार ।।
११-
लूली लँगड़ी काँइया, मोटी या हो सूर।
लेकिन अपनी पत्नि को, समझो नभ की हूर।।
१२-
रामदेव के देश में, ऐसे भी हैं लोग।
ना तो खुद कुछ कर रहे, ना करने दें योग।।
१३-
प्रेम दिवस पर कीजिये, मन में दृढ़ संकल्प।
नशा छोड़िए जो करे, सबका जीवन अल्प।।
१४-
प्रेम दिवस को आइए, कर दें हम साकार।
गैर न कोई है यहाँ , करें सभी से प्यार ।।
१५-
प्रेम जगत में उच्च है, निम्न घृणा का रूप।
प्रेम वृक्ष विश्राम दे, जब हो दुःख की धूप।।
प्रीतम श्रावस्तवी
श्रावस्तवी (उ०प्र०)