दोहे
१.
अनबन जस की तस रही, रखिये इतना याद।
जब तक मिल औ बैठ कर, किया नहीं संवाद।।
२.
भोलेपन पर घात ला, बैठे कई शियार।
भावुकता को जो भुना, करते रहें शिकार।।
३.
जिसकी चाहत जन जुड़ी, करता सकल विचार।
बंदर बनता पंच जब, बढ़ती है तकरार।।
४.
अहम नाश का मूल है, सृजन मृदुल व्यवहार।
सज्जन समझे बात को , कुटिल बढ़ाए रार।।
५.
सच्चाई से दूर हो, जब चलता संचार।
राह फ़र्ज़ की भूल कर, करता बस व्यापार।।
©सतविन्द्र कुमार राणा ‘बाल’