Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
16 Mar 2019 · 4 min read

दोहे (1-55)

कवि का अंतिम लक्ष्य हो, जग के मार्मिक पक्ष।
करे जगत के सामने, सर्वप्रथम प्रत्यक्ष।। 1

कविता कवि का कर्म है, करे उसे निष्काम।
तब ही तो साहित्य में, होगा उसका नाम।।2

प्रगतिशील साहित्य का, होता है यह फ़र्ज़।
रूढ़ि अंधविश्वास की, मेटे जग से मर्ज़।।3

दुबली-पतली देह पर, यह सोलह शृंगार।
कैसे सहती हो प्रिये!, आभूषण का भार।।4

पागल,प्रेमी और कवि, करें विलग व्यवहार।
तीनों का कल्पित सदा, होता है संसार।।5

कंपित होते हैं अधर, तन – मन उठे तरंग।
प्रियतम पहली बार जब, मिले सेज पर संग।।6

द्वैत और अद्वैत का, पचड़ा है बेकार।
जिसको भी जैसा लगे, करो भक्ति बस यार।।7

नयनों की दहलीज़ पर, गोरी तेरा रूप।
देखा था इक बार वह , उर बस गया स्वरूप।।8

काव्य – कला सीखी नहीं, और न सीखी रीत।
कविता में लिखता रहा, केवल उर की प्रीत।।9

तन को जब उल्टा लिखो, नत हो जाता मीत।
जिनका तन नत हो गया, समझो उपजी प्रीत।।10

सीना चौड़ा हो गया, बापू का उस रोज।
जिस दिन अपनी अस्मिता, बेटा लाया खोज।।11

चीर गगन को देख लूँ, क्या है उसके पार।
या फिर उसी अनंत का, कैसा है विस्तार।।12

आ जाएगी मौत भी, पूर्ण न होंगे काम।
मरने के उपरांत ही, मिलता है विश्राम।।13

दीन, दुखी, लाचार पर, करो न अत्याचार।
मानवता का ध्येय है, करो सभी से प्यार।।14

मंदिर-मस्ज़िद गा रहे, मानवता के गीत।
दानवता को त्यागकर, करो आपसी प्रीत।।15

मन के ही भीतर रहे, मेरे मन के भाव।
उनको भाया ही नहीं, बाहर का बिखराव।।16

गोरी तेरे रूप का, जब से देखा ओज।
तब से ही आँखें तुझे, ढूँढा करतीं रोज।।17

रावण की लंका जली, जला नहीं अभिमान।
दुष्टों की यह धृष्टता, लेती उनकी जान।।18

बड़ा सुखद अहसास है, रहना प्रियतम संग।
उसके ही संसर्ग से, मन में उठे तरंग।। 19

बाहर सभी चुनौतियाँ,जब-जब करतीं वार।
अंदर की कमजोरियाँ, हमें दिलातीं हार।। 20

कर्मवीर करता सदा, प्राप्त जगत में इष्ट।
कर्म बिना कोई नहीं, बनता यहाँ विशिष्ट।।21

मैंने समझा ही नहीं, उनके मन का हाल।
जिनके मन में था भरा, द्वेष-कपट विकराल।।22

वक्त न आता लौटकर , कुछ भी कर लें लोग।
इसीलिए तुम वक्त का, करो पूर्ण उपयोग।। 23

झूठ रहेगा झूठ ही, चाहे पर्दा डाल।
अंत समय परिणाम भी, आएगा विकराल।। 24

काँटो से डरकर यहाँ, जो जाता है दूर।
मंजिल रूपी फूल तब, हो जाते काफ़ूर।।25

घड़ी पुकारे हर घड़ी, चलो हमारे संग।
तब ही इस संसार में , जीत सकोगे जंग।।26

औरों को देते ख़ुशी, जो खुद सहकर कष्ट।
उनके प्रति संवेदना, कभी न होती नष्ट।।27

कैसे-कैसे हो गया, तन-मन का उत्थान।
बीत गया अब बचपना,गोरी हुई जवान।।28

रिश्ते होते अंकुरित, जहाँ प्रेम हो मीत।
अपनी मृदु मुस्कान से, सबके दिल लो जीत।।29

जग में ऐसी मापनी, मिली न मुझको यार।
सुंदरता जो आपकी, माप सके दिलदार।।30

जितनी होती हैसियत, उतना लेना कर्ज।
अधिक लिया तो बाद में, बन जाता है मर्ज।।31

गोरी आगे हो गई, सुंदरता को फाँद।
लगता है प्रतिबिम्ब सम, उज्ज्वलता से चाँद।।32

जग में अपने लोग ही, जब-जब देते मोच।
नर होकर मजबूर तब, बदले अपनी सोच।।33

रिश्ते होते अंकुरित, जहाँ प्रेम हो मीत।
अपनी मृदु मुस्कान से, सबके दिल को जीत।।34

माता कुछ खाती नहीं, भूखा हो जब पूत।
बूढ़ी हो जब माँ वही,पूछे नहीं कपूत।।35

जग में ऐसी मापनी, मिली न मुझको यार।
सुंदरता जो आपकी, माप सके दिलदार।।36

प्रियतम तुमको देखना, ज़ुर्म हुआ संगीन।
दी मुझको ऐसी सज़ा,किया दीन को दीन।।37

दो-दो रुपयों के लिए, लड़ते दिखे सुजान।
रोना आता है मुझे, कैसे ये धनवान।।38

फटे हुए कपड़े पहन, देकर फ़ैशन रूप।
दिखा रहे संसार को, अपना रूप-कुरूप।।39

सागर में जल है भरा, लेकिन बुझे न प्यास।
इसी तरह धनवान के, धन की करो न आस।।40

यदि अच्छी बातें कहें, हमसे अपने लोग।
तो उनको स्वीकार कर, करिए सदा प्रयोग।।41

दोहे की दो पंक्तियाँ, रखतीं ऐसे भाव।
सहृदय के हृदय पर, करती सीधे घाव।। 42

कभी भोर में रात हो, कभी रात में भोर।
नियम बदल दे यदि प्रकृति,मच जाएगा शोर।।43

जिस दिन समझो हो गए, हिन्दू-मुस्लिम एक।
शब्दकोश में ही नहीं, होगा शब्द अनेक।।44

सावन मनभावन लगे, प्रियतम तेरे साथ।
आ करीब मैं चूम लूँ, तेरा सुंदर माथ।।45

झड़ी लगी चारों तरफ, घटा घिरे घनघोर।
सावन की बरसात में, नाच रहा मन मोर।।46

चित्ताकर्षक लग रहे, नदियाँ-पोखर-ताल।
सावन की ऋतु में सभी, बच्चे करें धमाल।।47

साजन बिन सावन मुझे, लगता है बेकार।
मेरी खुशियों के लिए, एक वही आधार।।48

लगा रही पावस झड़ी, दावानल-सी आग।
मुझको अब जलते दिखे, घाटी-वन-गिरि-बाग।।49

चढ़ी जवानी इस तरह, जैसे चढ़े शराब।
झट ठंडे झट में गरम, होते युवा खराब।।50

धन-दौलत से हो गया, जिनको जग में प्यार।
देखे से दिखता नहीं, उनको घर-परिवार।।51

मतलब के सब दोस्त हैं, मतलब के सब यार।
अपने मतलब के लिए, दिखा रहे हैं प्यार।।52

जो बातें होतीं नहीं, पत्नी को मंजूर।
पति को भी तो चाहिए, करे नहीं मजबूर।।53

अपनी गलती पर नहीं, गौर करे तत्काल।
ले-लेता है बाद में, रूप वही विकराल।।54

पत्नी के उपदेश से, कविवर तुलसीदास।
सांसारिकता त्याग दी, लगी राम की आस।।55

भाऊराव महंत

Language: Hindi
538 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
सुदामा जी
सुदामा जी
Vijay Nagar
आज के इस स्वार्थी युग में...
आज के इस स्वार्थी युग में...
Ajit Kumar "Karn"
आया दिन मतदान का, छोड़ो सारे काम
आया दिन मतदान का, छोड़ो सारे काम
Dr Archana Gupta
"एक नज़्म तुम्हारे नाम"
Lohit Tamta
*
*"सावन"*
Shashi kala vyas
3016.*पूर्णिका*
3016.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
*पल्लव काव्य मंच द्वारा कवि सम्मेलन, पुस्तकों का लोकार्पण तथ
*पल्लव काव्य मंच द्वारा कवि सम्मेलन, पुस्तकों का लोकार्पण तथ
Ravi Prakash
🙅आज का आग्रह🙅
🙅आज का आग्रह🙅
*प्रणय*
"झूठे लोग "
Yogendra Chaturwedi
" सुपारी "
Dr. Kishan tandon kranti
आँखों में कुछ नमी है
आँखों में कुछ नमी है
Chitra Bisht
सोच...….🤔
सोच...….🤔
Vivek Sharma Visha
पहले क्रम पर दौलत है,आखिर हो गई है रिश्ते और जिंदगी,
पहले क्रम पर दौलत है,आखिर हो गई है रिश्ते और जिंदगी,
पूर्वार्थ
जो लड़की किस्मत में नहीं होती
जो लड़की किस्मत में नहीं होती
Gaurav Bhatia
"I having the Consistency as
Nikita Gupta
प्रकृति (द्रुत विलम्बित छंद)
प्रकृति (द्रुत विलम्बित छंद)
Vijay kumar Pandey
गौ माता...!!
गौ माता...!!
Ravi Betulwala
Plastic Plastic Everywhere.....
Plastic Plastic Everywhere.....
R. H. SRIDEVI
लिमवा के पेड़ पर,
लिमवा के पेड़ पर,
TAMANNA BILASPURI
अन्तर्मन की विषम वेदना
अन्तर्मन की विषम वेदना
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
फितरत
फितरत
Dr. Akhilesh Baghel "Akhil"
ये तो जोशे जुनूँ है परवाने का जो फ़ना हो जाए ,
ये तो जोशे जुनूँ है परवाने का जो फ़ना हो जाए ,
Shyam Sundar Subramanian
*चिड़ियों को जल दाना डाल रहा है वो*
*चिड़ियों को जल दाना डाल रहा है वो*
sudhir kumar
*पयसी प्रवक्ता*
*पयसी प्रवक्ता*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
एक रचयिता  सृष्टि का , इक ही सिरजनहार
एक रचयिता सृष्टि का , इक ही सिरजनहार
Dr.Pratibha Prakash
बड़ी दूर तक याद आते हैं,
बड़ी दूर तक याद आते हैं,
शेखर सिंह
वज़्न -- 2122 2122 212 अर्कान - फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन बह्र का नाम - बह्रे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
वज़्न -- 2122 2122 212 अर्कान - फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन बह्र का नाम - बह्रे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
Neelam Sharma
क्यों खफा है वो मुझसे क्यों भला नाराज़ हैं
क्यों खफा है वो मुझसे क्यों भला नाराज़ हैं
VINOD CHAUHAN
उलझी रही नजरें नजरों से रात भर,
उलझी रही नजरें नजरों से रात भर,
sushil sarna
दौलत नहीं, शोहरत नहीं
दौलत नहीं, शोहरत नहीं
Ranjeet kumar patre
Loading...