$दोहे- होली के
दोहे – होली के
लगता प्रेम गुलाल जब, विष मन का हो दूर।
गले मिलें फिर शान से, झूमें सब भरपूर।।
रंग लिए हैं एकता, जोड़ें उर के तार।
रंगोली जैसे कहे, समता का व्यवहार।।
रंगों-बू ले पुष्प सम, सबका खींचें ध्यान।
गुलशन-सम संसार हो, गूँजें प्रतिदिन गान।।
होली खेलें प्रेम की, हमजोली की तान।
मानवता में चूर हो, बढ़े मनुज की शान।।
जीवन में आनंद हो, सही हमारी राह।
मायूसी में जो रहें, ग़लत लिए हैं चाह।।
छल माया मन द्वेष से, उतरा जो है पार।
जीत उसी के दर रही, बाहर बैठी हार।।
प्रीतम जिससे प्रीत कर, सार्थक करना नाम।
रीत यही हर गीत को, देगी ऊँच मुक़ाम।।
#आर.एस. ‘प्रीतम’
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