दोहे सृजन शब्द–“आजादी”
मगणाश्रित दोहे
गण संयोजन–(222)$$$
समकल संयोजन__4432 या 443 में
प्रत्येक चरण के आदि या द्विकल, चौकल के पश्चात–
सृजन शब्द–*आजादी*
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1.
कंटीली वो राह थी, अंधेरों का संग।
आजादी की तान में, आशाओं का रंग॥
2.
आजादी मिलती कहाँ, बाधाओं के जाल।
आकांक्षा पूरी वहाँ, दीवानें बन ढाल॥
3.
लाचारी बढ़ती चली, बेगारी नित आज।
आजादी बुनती गई , मायूसी का ताज॥
4.
आजादी तो फूल है, आशाओं के हार।
मालाओं के रूप में, आशीषों का सार॥
5.
आजादी कीमत नहीं, साम्राज्ञी हर देश।
बाजारों बिकती नहीं, बौराये तज वेश॥ प्रदेश
6.
आजादी शुभ सोच हो, माताओं की लाज।
आशाऐं फलती भली, कन्याओं हित काज॥
7.
आजादी खिलवाड़ है, शैतानों की आड़।
बारूदों के ढेर हैं , कंटीली हर बाड़॥
शीला सिंह बिलासपुर हिमाचल प्रदेश🙏