दोहे – सरपट
मानक मणियां पहनकर, पारख लाज लगाव,
बिन सुध बुध ठोकर खाये,आये कौन बचाव,.
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मनोरंजन के खेत में बोये जाते संज्ञाहरण बीज,
मनोभंजन एक कला, लौट आयेंगे सब अजीज़.
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लाखों करोड़ों जन खड़े, एक दूजे को देख,
बिन बोले मालूम नहीं, मन के लिखे लेख,.
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जब बात आ जाये जिद्द पर कर लो संकल्प,
व्यसन एक न बचे,जीवन रह गया अति अल्प,
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साखि कह गये साहेब कबीर जस् फैले अबीर,
जन जन संवाद करें, छूमंतर हुई सबकी पीर.
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भूखा भूखे क्या करे, ,क्या सुनावे लोग,
निज बर्तन भांडे रहे, बैठे देखो तब जोग.
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दुनिया में आये हो, है बस ये एक संजोग,
पत्थर पूजने लगे ,पैदाइश तेरी है संभोग.
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मनोबल एक चाहिए, जीवन देखी देख,,
तू चाहे जो बन रहे, इंसानियत बन देख.
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तेरा फैलाया जाल है, कांटे संग देख फूल,
जब चाहे सुधार ले ,जीवन की ये भूल.
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आचरण में मनुष्य के, है विविध प्रयोग,
उसका उसके संग,, काहे होते व्यर्थ दंग.