दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठ
दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठ
अभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।
सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार ।।
झूठों के बाजार में, सत्य खड़ा लाचार ।
असली की साँसें घुटें, आडम्बर भरमार ।।
आकर्षक है झूठ का, चकाचौंध संसार ।
निश्चित लेकिन झूठ की, किस्मत में है हार ।।
सच के आँगन में उगी, अविश्वास की घास ।
उठा दिया है झूठ ने, सच पर से विश्वास ।।
झूठ जगाता आस को, सच लगता आभास ।
मरीचिका में झूठ की, सिर्फ प्यास ही प्यास ।।
सत्य पुष्प पर झूठ की, जब पड़ती है छाँव ।
जल जाते हैं सत्य के, झूठ छाँव में पाँव ।।
दूर तलक चलती नहीं, कभी झूठ की नाव ।
इसकी तो तासीर है, सच को देना घाव ।।
सुशील सरना / 18-6-24