दोहे संग्रह
प्रदत्त पाँच दोहे
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दुष्कर करता है जनम,जीवन का अभिशाप।
जीवन जीना प्रेम से,कभी करो मत पाप।।
पुहुप सुरभि मन में करे,खुशियों की बरसात।
मस्ती में झूमे भ्रमर , हर डाली हर पात।।
जहाँ कलेवर ही दिखे , महलों का कमजोर।
वह राजा करता सदा , ढोल पीटकर शोर।।
पाकर भी जो यंत्रणा , करता नहीं सुधार।
जीवन के व्यवहार में, जाता है वह हार।।
पुण्य महाभारत कथा , जिसमें गीता सार।
धर्मराज की जीत है , दुर्योधन की हार।।
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स्वरचित©®
डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”
छत्तीसगढ़(भारत)