दोहे रमेश के, मकर संक्रांति पर
मकर राशि पर सूर्य जब, आ जाते है आज !
उत्तरायणी पर्व का,……हो जाता आगाज !!
घर्र-घर्र फिरकी फिरी, .उड़ने लगी पतंग !
कनकौओं की छिड़ गई,.आसमान मे जंग !!
कनकौओं की आपने,ऐसी भरी उड़ान !
आसमान मे हो गये ,पंछी लहू लुहान !!
अनुशासित हो कर लडें,लडनी हो जो जंग !
कहे डोर से आज फिर, उडती हुई पतंग !!
भारत देश विशाल है,अलग-अलग हैं प्रांत !
तभी मनें पोंगल कहीं, कहीं मकर संक्रांत !!
उनका मेरा साथ है,…जैसे डोर पतंग !
जीवन के आकाश मे,उडें हमेशा संग !!
मना लिया कल ही कहीं,कही मनायें आज !
त्योंहारो के हो गये,.अब तो अलग मिजाज !!
त्योहारों में घुस गई, यहांँ कदाचित भ्राँति !
मनें एक ही रोज अब,नही मकर संक्राँति !!
जीवन में मिल कर रहो, सबसे सदा “रमेश” !
देता है संक्रांति का, …..पर्व यही सन्देश !!
रमेश शर्मा