दोहे मोहे
दोहे मोहे
नमो नम: वागेश्वरी, करो जगत कल्याण।
आन विराजिए रसना, सृजना का वरदान।।
रिद्धि सिद्धि बुद्धि वर दो, गणपति शुभ किरपाल।
गजमुख मंगलमूरती, जय शिव शंकरलाल।।
चरणन वंदन आपको, गौरी पुत्र गणेश।
विघ्न हरो मंगल करो, हरो सभी मम क्लेष।।
जब-जब जल नार नयना, औ’ तड़फ मरे गाय।
तब-तब अंबर टूटता, माँ प्रकृति कहर ढाय।।
कहता सबसे धर्म तो, जानो मेरा मर्म।
जीवन के आधार हैं, लगें पेड़ सत्कर्म।।
शुभमंगलमय कर्म हो, लगे पेड़ जो एक।
अनुपम भेंट रहे सदा, करो कर्म ये नेक।।
नफरतों के हुए शहर, चतुराई की चाल।
तेरे मुँह तेरी कहें, ओढ़े रहते खाल।।
मोबाइल युग देख तो, नव आशिकी निभाय।
न वो गली न वो चिठिया, प्रेम रोग चस्पाय।।
बात जमाने की गुजर, तब थी क्या कुछ और।
निगाहे सब्र बेसबब, चाहत का बस दौर।।
एक नजर दिख आरजू, और न कोई ख़्वाब।
अब के प्रेमी देख तो, तिर तेवर तेज़ाब।।
किसी कु छोटा देख मत, सब जन एक समान।
दूर से दूर ही दिखे, या गुरूर नादान।।
बुरी संगत औ’ कुयला, एकहि समान होय।
गर्म हो तो हाथ जले, ठंडा काला सोय।।
नफरतों के हुए शहर, चतुराई की चाल।
तेरे मुँह तेरी कहें, ओढ़े रहते खाल।।
कैसे हो पावे अबन, इंसा की पहचान।
दोनों ही नकली हुए, आँसू औ’ मुस्कान।।
रिसते रिश्तों की सदा ,करिए अब क्या बात।
निभाते हैं अब उनको, थाम सभी ज़ज्बात।।
तेरे धोखे की सदा, देती दिल पर घाव।
रीत जगत तिरछी अड़ी, देती बहुत तनाव॥
लोग सुनाएँ खूबियां, दे दे ताल बजाय।
मैं अपने ही आप में, कमियां खोजूँ जाय।।
कान्हा तेरी वाट को, जोहें अबला नार।
पापकर्म अब बढ़ गए, कब लोगे अवतार।।
चिंता है नहीं अपनी, चिंता तो चिंताव।
कृष्ण मुरारि रक्षक हैं, जिधर चले अब नाव।।
# बीना