दोहे – “मन्थन” पर
नर मंथन उर में करे,बहे ज्ञान की धार।
सद् अरु असद् विचार का,है विवेक आधार।।
साधू संत समान हैं,अंतर उर का ज्ञान।
बुद्धि शांत हो तब जगे,है विवेक सच मान।।
ज्यों दधि मंथन से अलग,हो जाता नवनीत।
त्यों ही मन मंथन करो,निश्चित होगी जीत।।
मंथन अद्भुत कर्म है,नर मथना ले सीख।
आत्म ज्ञान का मार्ग भी,साँच पड़ेगा दीख।।
रोजगार को ढूंढता,फिरता आज जवान।
बेकारी से मर रहा,आकुल हुआ किसान।।
नोट बंद से क्या हुआ,कालेधन का नाश।
निर्धन पिसता दीखता,असफल हुआ प्रयास।।
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷