#दोहे नीति के
#दोहे
वाचाली संकोच हो,करें सदा नुकसान।
दवा अधिक कम जो हुई,भूलो रोग निदान।।
ज्ञान शील का संग हो,पुष्प-गंध-सा मेल।
आकर्षित जनमन करे,जीवन उत्सव खेल।।
विष भ्रष्टाचार का,पीकर करते काज।
ये मीठी सी खाज़ है,अंत दर्द की लाज।।
सुनने वाले लोग ही,सुना सकें दिन एक।
विश्वास लिए बाँटते,ज्ञान मिला जो नेक।।
करे बड़ाई भीड़ में,निंदा सम्मुख देख।
मित्र नीति ये प्रीत की,प्रीतम उर उल्लेख।।
खान-पान-सा मन रहे,समझी प्रीतम बात।
कनक भले ही मद भरे,सिरे चढ़े उत्पात।।
क्षमता ज़्यादा सोच से,रखो भरोसा आप।
चाहो तो जग नाप लो,पाकर दृढता ताप।।
#आर.एस.”प्रीतम”