#दोहे नीति के-2
चलते-चलते रात हो,नहीं बने पर बात।
दिन निकले फिर कीजिए,जोश भरी शुरुआत।।
पट्टी भ्रम की खोलिए,सबको भाएँ आप।
निकला मोती सीप से,नैना लेता माप।।
आत्म कहा जो सुन लिया,दोष लिए सब जीत।
पुष्प खिला मन मानिए,सुगंध से जग प्रीत।।
आप सही तो जग सही,स्वयं हुए उपदेश।
करनी कहता इत्र कब,खींचे भावावेश।।
मौन हुआ मन बाँध ले,सुंदर यौवन रूप।
भूपों से भी ना बंधे,मद मौसम की धूप।।
नेक कर्म की लूट है,समय न जाए छूट।
छूटा तीर न लौटता,रोना चाहे फूट।।
#आर.एस.”प्रीतम”