दोहे:-निरीक्षक, “साहेब का अहसास”
उम्र अपनी लम्बी हो चली,
चाहे गति होय इसी क्षण में,
निज व्यवस्था देख चले,
कोई शास्त्र नहीं प्रमाण !
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जाको चित भ्रमण करे,
लो आतम से जोड,
ज्यों पतंग चढ़े आकाश में,
डोर थमाहे हाथ,
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उन भक्तन ते तो चोर भले,
जो रखे ख्याल चहुं ओर,
उन भक्तन को कौन उपाय,
जाको सिर्फ थारी पे रहे ध्यान !
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जारी जार वो फ़तवा जो जान घनेरी
विश्वास जगे इंसा इंशा बैरी न होय,
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ऐसो रुख सींचिये फल लागे चार,
जीव जीवन में प्रेम, दया, सेवा, क्षमा,
माली सबको आतम रहे,
फिर चाहे चोटी रखे या कटाये मूँछ !