दोहे – डी के निवातिया
दोहे
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सज धज के नारी खड़ी, होकर भाव विभोर !
सम्मोहन के दाँव से, खींच रही खुद ओर !!
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लब जब मुस्काने लगे, खिलने लगे कपोल !
संकेतक यह प्रीत का, चाहे कुछ न बोल !!
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पढ़ लिख के आगे बढ़ा, मानव बना महान।
भीम राव के नाम से, जाने सकल जहान ।।
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शिक्षा में अग्रणी रहे, बने ज्ञान प्रतीक ।
जगत कल्याण के लिए, काम किये निर्भीक।।
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समय हमें ये कह रहा, संयम धरना सीख।
दुख बीते ते सुख मिले, काहे करता चीख ।।
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लिख लिख रचना कवि भये, मांगे सबका प्यार !
खुद न किसी को भाव दे, बन कर रचनाकार !!
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स्वरचित: – डी के निवातिया