दोहे जो सम्मोहन तोड़े !
अक्सर अक्षर बिन पढ़े !
पढ़ लेता है …इंसान..!
विवेक रुप तीसरा नेत्र है उनका ज्ञान,
उन विद्वानों का क्या करें !
रटे रटाये मंत्र है जिनका ज्ञान !
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भिक्षु जीव प्रवृति है जो मांगे प्राण !
(सिर्फ उदर की भूख शांति के लिए)
उन जन का कौन उपाय जो हर
मंत्र पूर्णता पर कहते फिरते स्वाहा !!!
(सीधे सीधे दस के नोट से स्वाहा).
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गुरु चेतन खोज रे !
वरन् कौन गत को उपाय !
गुरु खुद ठोर नहीं !
तुमको कैसे राह दिखाये !!!
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न मेरो राम है न मेरो रहीम !
पार पोश बडो करो !
अब तक क्यों नहीं करते !
खुद ही अपनो अपनो निज काम !