*दोहे* : *(गीता – सार)*
दोहे : (गीता – सार)
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(1)
एक महाभारत छिड़ा ,सबके मन में आम
कृष्ण जिसे भी मिल गए ,वह जीवन अभिराम
(2)
मृत्यु सुनिश्चित जानिए ,जीवन दो क्षण मात्र
शिक्षा देते कृष्ण यह , अर्जुन देखो छात्र
(3)
जाने कितने जन्म से , चलता यह संसार
जन्म-मरण क्रम चल रहा ,गीता के अनुसार
(4)
दाँव – पेंच सारे चलो , नीति ज्ञान से युक्त
लोभ मोह मद से मगर ,रखना भीतर मुक्त
(5)
प्रभु के भीतर बस रहा ,सकल जगत साकार
देखो यह श्रीकृष्ण का , विश्वरूप – विस्तार
(6)
झूठे जग में कृष्ण का ,बस उपदेश यथार्थ
तर जाता वह जो बना , सुनने वाला पार्थ
(7)
असमंजस में जग पड़ा ,किंकर्तव्यविमूढ़
गीता कहती कर्म – पथ , पर हो जा आरूढ़
(8 )
भय से थरथर काँपते ,मनुज कहो क्यों गात
करो युद्ध निर्भय बनो , तभी बनेगी बात
(9)
क्या जीवन क्या मृत्यु है ,दो क्षण का यह मेल
युगों – युगों से चल रहा ,अविरल इन का खेल
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451