दोहे खटपट
जैसे भाव मन में हैं वैसा ही धरातल तैयार,
प्रेम भाव से सींचा करो उग आयेगा प्यार..
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जिस देश में गूंजती, महिलाओं की चीख,
ऐसे दरिंदे देखो देते ,, सदाचार की सीख,
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कर्मकांड के खिलाफ आरंभ किया संवाद,
झूठ की नींव हिलने लगी शेष बचा आबाद.
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शुभ अशुभ होता नहीं, अकर्मण्य के जाल,
मिलते नहीं प्रमाण,व्यवाहरिक सब जंजाल.
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पढ़ें और पढ़ाये होते ढ़ाक के तीन पात,
पल्लू कुछ है नहीं जित देखों उत घात..
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वट पूजा, पीपल पूजे, पूजते तुलसी लोग,
गुण धर्म उपयोग सीखे नहीं कैसे फले योग.
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आहार निद्रा पर टिका यह सकल शरीर.
खुद पर निर्भर रहकर बनते सब अमीर..
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रटे रटाये गीत रे , ,देखते मिलन की बाट,
रहट को पहले मिले,देख पानी पानी घाट.
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वार ते वार बढ़े एक सप्ताह के चक्र
फिर से गुजरे चार बार पूर्ण इक वक्र
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ध्वनि प्रकाश एक ताल,उत्पत्ति क ताज,
मेंढ़की बिठाए ताल, होता तबहीं आगाज़