*दोहे और भक्ति-आंदोलन*
1.
ममता उतनी ही भली,जासे उपजे ध्यान,
उस सहयोग का कौन मूल्य,जो बना दे असहाय,
2.
प्रेमी खोजने मैं चला, प्रेमी मिला न कोई,
जो मिले सो दिलज़ले..
दिल का तो.. मालूम नहीं,
सब “मन की हाल” सुनाते..।
3.
गिर गिर और गिर देंखे किस हद तक गिर पाए,
जिस क्षण हिय विवेक जगे,फिर गिर न पाये,
4.
भले खासे निन्यान्वे जुड़े रहे, सौ न पूरे होए
यो ऐसा चक्कर पड़ा,अन्ध पिसे कुत्ता खाय
5.
सबर संतोष चाहिए, जो होए भौतिक व्यवहार,
बे-सबरा होकर रहिये,जहाँ बात ज्ञान कि होवे
6.
भूख को खाकर,नींद को सो कर,
वासना को सिंचकर न कोई तृप्त हुआ,
न होने के ..आकार,
बस “समझ” एक उपाय जो दे पिण्ड छुड़ाए,
डॉ महेन्द्र सिंह खालेटिया,