दोहे – अटपटे
वादा खिलाफी न करो, ये चरित्र पर दाग,
बोलने से पहले सोच, भड़क न जाये आग.
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अनुभवहीन के भाष सुन खोते अपने मूल.
कुदरत की महिमा कांटों संग खिलते फूल.
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बैठे बिठाये रह गये देखो आस्था की बाट
व्यवस्था आदमी की देखो हो गये ठाठबाट
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इधर से उधर करते रहे ,कतई न बैठी तान,
खिंचतान बढ़ती गई,,सो सके न चादर तान.
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भले भलाई एकमत ,हाथ जोड़ हो प्रणाम ,,
मिलजुल आगे बढ़े होगा अवश्य कल्याण.
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साधना निष्फल न जाय साधु प्रेम सुहाय
साधु ध्यान धूणी मह, कभी सफल न होय.
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व्यवहार सुथरा चाहिए ,तब बने कुछ बात,
मन में कपट भरा , देखों सूखा चीढ़ गात..
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ध्यान धारण तुम करो सुभाव दिखे बाहर,
दया प्रेम करुणा उपजे बदल जाये आचार.
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मन थकता नहीं सतत करता सोच विचार,
एक भाव पैदा करो, रुक जायेंगे अत्याचार.
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मैं मानुस जन्म तां सोच विचार मेरी तहजीब,
मानुष चक्रव्यूह रचा, वंचित कर,रखा गरीब.