दोहे,,,,,,,,,,,,,(साधना)
त्रितप, दान, और प्रार्थना
मानव की है साधना
आध्यात्मक उन्नति करे
करे पूर्ण आराधना।
मनसा वाचा, कर्मणा
त्रितप करे जो को
आत्म शुद्धि निर्मल चित
निश्चित वाको होइ।
आनंदित मन शांत चित्त
पावन अन्तस् होई
प्रभु का ध्यान जो धरे
मन का तप करे सोई।
देव, द्विज, गुरु पूजे
करी हृदय निर्मल
अहिंसा ब्रह।चर्य पाले
शारीरिक तप करें विरल।
हितकारी प्रिय सत्य कहें
उद्वेग न जिसको आय
वेद पढ़े भगवन जपे
सो वाणी तप कहलाय।