दोहें
राम नाम को बेचते, कहते खुद को संत।
पाप कर्म में लीन है , जैसे कोय कुजंत।।
राम लखन वन को गये, पिता वचन को मान।
बच्चे अब के बाप का, करते नित अपमान।।
भगवन कलयुग मे सुना, फिर लोगे अवतार।
कल्कि रुप में आवोगे, बनकर तारणहार।।
स्वरचित….
पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’