$दोही
#दोही
दोही एक मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों(प्रथम एवं द्वितीय) में पंद्रह-पंद्रह मात्राएँ और सम चरणों(द्वितीय एवं चतुर्थ) में ग्यारह-ग्यारह मात्राएँ होती हैं।विषम चरणांत लघु गुरू या तीन लघु एवं सम चरणों का अंत गुरू लघु मात्राओं से होना अनिवार्य है।
छंद- #दोही
चलते रुकते झुकते सभी, समय करे अनुरूप।
इसके आगे लाचार हैं, धनी बली जग भूप।।
समझो पंक्ति वही ख़ूब है, सुनके निकले वाह।
आत्मा पर जो दस्तक़ करे, लूटे प्रेम अथाह।।
गुरु फ़ितरत है उस मनुज की, रखे सभी का ध्यान।
तरुवर सम निज गुण बाँटता, करे नहीं गुणगान।।
तिनका-तिनका हर जोड़ कर, किया नीड़ निर्माण।
आँधी आई बिखरा गयी, लगा हृदय पर बाण।।
आँसू देना अब छोड़िये, देता चल मुस्क़ान।
मानवता की तो है यही, सरल सहज पहचान।।
रहना हो दूर तनाव से, पर ग़लती कर माफ़।
झुके शत्रु भी इस रीत से, उर से हो इंसाफ़।।
आर.एस. ‘प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित सृजन
आर.एस. ‘प्रीतम’
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