#दोहा-
#दोहा-
■ वर्तमान परिवेश पर।
[प्रणय प्रभात]
“झड़ गए फूल पलाश के,
सूख गए कचनार।
नागफनी बाक़ी बची,
छत-आंगन घर-द्वार।।
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#मन्तव्य-
पारिवारिक व सामाजिक मानसिकता का परिवर्तन बदलते देश काल और वातावरण का परिचायक होता है। सोच की बदलती दिशा भावी दशा में आमूल-चूल बदलाव को भी इंगित करती है। दोहा इसी को रेखांकित करता है।
-सम्पादक-
●न्यूज़&व्यूज़●