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17 Nov 2024 · 1 min read

दोहा

*विधा: दोहा
शांत रस
*सृजन शब्द -कंटक सी यह राह है।

कंटक सी यह राह है,चुभते लाखों शूल।
हाथ पकड़ लो साँवरे, मुझे गए क्यों भूल ।।

मोह उठा संसार से, बहुत लिए दुख झेल।
मार्ग दिखाओ साँवरे, हो अब अपना मेल।।

जोगन तेरे प्रेम की, जपती तेरा नाम।
दर्श दिखाओ अब मुझे, आयी जीवन शाम।।

अटके मेरे प्राण है, तुम्हें करूँ मैं याद।
दर्शन पा कर आपका, हो जाऊँ आजाद ।।

पूजा भगवन कर रही, नयनों में है नीर।
तुम बिन मेरा कौन है, समझे जो हिय पीर।।

सीमा शर्मा ‘अंशु’

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