दोहा
*विधा: दोहा
शांत रस
सृजन शब्द -बैरागी मन
बैरागी मन चाहता, प्रभु चरणों की धूल।
हर पल सिमरन मैं करूँ, सकल जगत को भूल।।
रिश्ते सारे नाम के, दुख का ही हैं मूल।
स्वार्थ सब हैं साधते,हृदय चुभाते शूल।।
मेरी हर बाधा हरो, दर्शन की है आस।
एक झलक मैं देख लूँ, आओ कान्हा पास ।।
बंधन तोड़े मोह के, उर में कृष्णा नाम।
सदा पुकारूँ मैं तुम्हें,निशिदिन आठों याम ।।
नैन भरे हैं नीर से , तकते रहते राह।
तुमको ही मैं चाहती, मुझे तुम्हारी चाह।।
सीमा शर्मा ‘अंशु’