दोहा
*विधा: दोहा
शांत रस
सृजन शब्द -हृदय सुमन
हृदय सुमन अर्पण करूँ, नाथ करो स्वीकार।
नैना दर्शन चाहते, आओ प्रभु इक बार ।।
जग की माया झूठ है, साँच तुम्हारा प्यार।
कृपा करो प्रभु आप ही, खोलो मन के द्वार ।।
हिय विकल अब हो रहा, कैसे पाऊँ पार।
नैन बहाते नीर हैं, दर्शन दो करतार।।
छोड़ जगत को है दिया, जोड़े तुमसे तार।
अब संभालो नाव को,कर दो भव से पार।।
तुम बिन मेरा कौन है, मिथ्या ये संसार।
जग काँटों की सेज है, जीवन है अंगार।।
सीमा शर्मा ‘अंशु’