दोहा
दोहा छंद
गात बाॅंध हनुमान का, लाये हैं दरबार।
उजड़े उपवन हैं सभी, मारा अक्ष कुमार।।
हनुमत कहते सुन जरा, रावण को ललकार।
लौटा दे सिय राम को, मत कर अत्याचार।।
रावण करता क्रोध है,मस्तक पर अभिमान।
मेरे जैसा कौन है, मैं तो हूँ बलवान।।
लाल आँख कर है कहे, खड़ग उठायी हाथ।
असुरों को ये हुक्म है, तोड़ो इसका माथ।।
बोल विभीषण ने कहे, रावण को समझाय।
राम दूत को मारना,नीति उलट हो जाय।।
रावण मारे क्रोध के, पटके अपने पाँव।
आग लगा हनु पूॅंछ में, खेला ओछा दांँव।।
आग लगी जब पूॅंछ में, लोग रहे तब भाग।
महल महल हनु कूदते, भड़की लंका आग।।
धूं धूं लंका जल रही, जलते सब नर नार।
हनुमत खेले खेल हैं, बोल राम जयकार ।।
जल कर लंका राख है, हनुमत की है शान।
रावण क्रोधित हो रहा ,हुआ राख अभिमान।।
सीमा शर्मा ‘अंशु’