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30 Sep 2024 · 1 min read

दोहा

दोहा
सब्र सरीखो धन नही, क्षमादान सो दान।
प्रेम सदृश्य त्याग नही, जिज्ञासा सो ज्ञान।।
©दुष्यंत ‘बाबा’

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