दोहा
दोहा….
विनती प्रभु रघुनाथ यह, करती धरा पुकार।
बढ़ता हर-दिन जा रहा, दुर्जन अत्याचार।। 1
रहते हो तत्पर सदा, करते जन उद्धार।
भक्तों के कल्याण में, मंगलमय अवतार।। 2
आओ प्रभु फिर से धरा, सज्जन रहे निहार।
जीवन सबका धन्य हो, पाकर मधुर फुहार।।3
करो कृपा श्री राम जी, हो मुख से जयगान।
लगा रहे बस आपके, चरणों में नित ध्यान।। 4
पालक तुम रघुनाथ हो, सबका इस संसार।
मूरख ऐसे लोग हैं , जिनके मलिन विचार।। 5
राम राम श्री राम कह, राम राम कर पाठ।
रामनाम हरता जगत, व्यथा पहर जो आठ।।6
राम राम कह खोजते, वन कन्दर तरु शैल।
पार नहीं पाते कभी, जिनके मन में मैल।। 7
नारायण अवतार हैं, जननायक प्रभु राम।
तीन लोक चौदह भुवन, शोभा द्युति अभिराम।। 8
मैं अज्ञानी क्या लिखूँ, महिमा उस जगदीश।
विनती बस प्रभु से यही, बना रहे आशीष।। 9
बार-बार विनती यही, पवनपुत्र हनुमान।
विकट समस्या सामने, करना नाथ निदान।।10
डाॅ. राजेन्द्र सिंह ‘राही’
(बस्ती उ. प्र.)