यूं मुरादे भी पूरी होगी इक रोज़ ज़रूर पूरी होगी,
नाम हमने लिखा था आंखों में
इंसान तो मैं भी हूं लेकिन मेरे व्यवहार और सस्कार
*विद्या विनय के साथ हो, माँ शारदे वर दो*
हम–तुम एक नदी के दो तट हो गए– गीत
फिर वसंत आया फिर वसंत आया
पहाड़ चढ़ना भी उतना ही कठिन होता है जितना कि पहाड़ तोड़ना ठीक उस
साहित्य का बुनियादी सरोकार +रमेशराज
तू मिला जो मुझे इक हंसी मिल गई
मन के भाव हमारे यदि ये...
Dr. Rajendra Singh 'Rahi'
यहां कुछ भी स्थाई नहीं है
🥀*अज्ञानी की कलम*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
सही समय पर, सही "पोज़िशन" नहीं ले पाना "अपोज़िशम" की सबसे बड़ी
23/183.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
जब मरहम हीं ज़ख्मों की सजा दे जाए, मुस्कराहट आंसुओं की सदा दे जाए।
वो भी तिरी मानिंद मिरे हाल पर मुझ को छोड़ कर