दोहा
गर्मी का मौसम आया, चिलचिल करती धूप।
पक्षी पानी को ढूढे, सूख चुके हैं कूप ।।
बदल रहा मौसम देखो, मानव का है लोभ
हरियाली गायब हुई, बढ गए सबमें रोग।।
दूषित हवा पानी हुई , शुद्ध मिले नही अन्न।
जीना मुश्किल हो चला, बदला बदला मन।।
कृत्रिमता भारी हुई, सब नकली व्यापार ।
दिखने में अच्छा लगे , अंदर से बेकार।।