हुआ जो मिलन, बाद मुद्दत्तों के, हम बिखर गए,
कविता के नाम पर बतकुच्चन/ musafir baitha
बेवजह का रोना क्या अच्छा है
"डिजिटल दुनिया! खो गए हैं हम.. इस डिजिटल दुनिया के मोह में,
क्या कहें ये गलत है या यारो सही।
हर एक मंजिल का अपना कहर निकला
मैंने देखा है मेरी मां को रात भर रोते ।