पुरुष का अहम
दासी सा व्यवहार नित ,पग पग पर अपमान ।
मंदिर जा कर कर रहा ,देवी का गुणगान ।
देवी का गुणगान,मात्र काया का भूखा।
पशुवत जीवन रोज ,भाव से बिल्कुल रूखा ।
फितरत की है बात ,घूमता काबा काशी ।
नारी का अपमान ,मानकर उसको दासी ।।
दासी सा व्यवहार नित ,पग पग पर अपमान ।
मंदिर जा कर कर रहा ,देवी का गुणगान ।
देवी का गुणगान,मात्र काया का भूखा।
पशुवत जीवन रोज ,भाव से बिल्कुल रूखा ।
फितरत की है बात ,घूमता काबा काशी ।
नारी का अपमान ,मानकर उसको दासी ।।