——-ग़ज़ल—–
——-ग़ज़ल—–
कैसे बताऊँ उसको नहीं बेवफ़ा हूँ मैं
ख़ुद ग़म हज़ार सहता हूँ और जी रहा हूँ मैं
क्या क्या सितम उठाये बताऊँ मैं किस तरह
फुरक़त की आग में ही शबो दिन जला हूँ मैं
बाहर निकल के देखो ज़रा तुम मरीज़ को
दर पर तुम्हारे सुबह से आकर खड़ा हूँ मैं
ख़ुद से अलग हमेशा समझते हो तुम मगर
तुमसे जुदा न एक भी पल को हुआ हूँ मैं
अपना बना ले या कि मुझे छोड़ दे सनम
कहता है दिल ये जैसा हूँ बस आपका हूँ मैं
शायद तू जनता नहीं “प्रीतम” के प्यार को
तुझमें समा के ख़ुद से हुआ लापता हूँ मैं
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)