दोहा ग़ज़ल
शीर्षक- “बेटी”
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देश नगर परिवार का, सदा बढायें मान।
प्रेम मूर्ति हैं बेटियाँ, मातु पिता की जान ।।
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कुछ तो पग पग पर करें, तानों की बौछार।
कुछ अज्ञानी भ्रूण में, ले लेते हैं प्रान।।
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सुत बेटी में क्यों भला, करते हो तुम भेद।
पुत्र अगर है शान तो, बेटी भी अभिमान।।
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दुख के बादल मत कहो, सुख की ये बरसात ।
सघन निशा में बेटियाँ, लातीं नवल बिहान।।
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सृष्टि रचयिता बेटियाँ, राधा कमला रूप।
प्रेम दया करुणा क्षमा, ममता की हैं खान।।
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देख चहकतीं बेटियाँ, गज भर सीना होय।
भूल सभी संकट खिले, अधरों पर मुस्कान।।
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अब तो “प्रीतम” कीजिये, मन में तनिक विचार।
अपनी मानव जाति का, करो नहीं अपमान।।
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)