दोहा सप्तक. . . . रिश्ते
दोहा सप्तक. . . . रिश्ते
आपस के माधुर्य को, हरते कड़वे बोल ।
मिटें जरा सी चूक से, रिश्ते सब अनमोल ।।
शंका से रिश्ते सभी, हो जाते बीमार ।
संबंधों में बेवजह, आती विकट दरार ।।
रिश्ता रेशम सूत सा, चटक चोट से जाय ।
कालान्तर में वेदना, इसकी भुला न पाय ।।
बंधन रिश्तों के सभी, आज हुए कमजोर ।
ओझल मिलने के हुए, आँखों से अब छोर ।।
रिश्तों में अब स्वार्थ का, जलता रहता दीप ।
दुर्गंधित से नीर में, खाली मुक्ता सीप ।।
संबंधों को चाहिए, प्रेम जनित सम्मान ।
रिश्तों के हर पृष्ठ को, पढ़िए अपना जान ।।
रिश्ते निर्मल नीर से, जीवन का शृंगार ।
आज दहकते स्वार्थ के, हरदम ही अंगार ।।
सुशील सरना / 8-5-24