दोहा मुक्तक
दोहा मुक्तक
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जग में हो रहकर सदा , मन में हो उत्साह।
पावन हो नित कर्म से,सतत बढ़ो नित राह।
आए बाधा फिर कभी ,कर – कर के संघर्ष।
मानव सेवा कार्य में , होती सबकी चाह।।
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मानव सेवा धर्म हो , बनना सदा महान।
दरवाजा बनकर सदा , रक्षक बनना जान।
मत भूलो संसार से , जाना है दिन एक।
मानव को मिलता तभी,इस जग में पहचान।।
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माँ लक्ष्मी की हो कृपा,तब मिलता सुखसार।
धनतेरस के पर्व में , सुखी सदा घर बार ।
धनतेरस शुभ आ गया , शुभ-लाभ के संग।
सुरभित वंदन वार से , माँ की हो उपकार ।।
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स्वरचित©®
डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”
छत्तीसगढ़(भारत)