“दोहा मुक्तक”
“दोहा मुक्तक”
भूषण आभूषण खिले खिल रहे अलंकार।
गहना इज्जत आबरू विभूषित संस्कार।
यदा कदा दिखती प्रभा मर्यादा सम्मान-
हरी घास उगती धरा पुष्पित हरशृंगार॥-1
गहना हैं जी बेटियाँ आभूषण परिवार।
कुलभूषण के हाथ में राखी का त्यौहार।
बँधी हुई ये डोर है कच्चे धागे प्रीत-
नवदुर्गा की आरती पुण्य प्रताप अपार॥-2
महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी