दोहा पंचक. . . व्यवहार
दोहा पंचक. . . व्यवहार
हमदर्दी तो आजकल, भूल गया इंसान ।
शून्य भाव के खोल में, सिमटा है नादान ।।
मुँह बोली संवेदना, मुँह बोला व्यवहार ।
मुँह बोले संसार में, मुँह बोला है प्यार ।।
भूले से तकरार में, करो न ऐसी बात ।
जीवन भर देती रहे, वही बात आघात ।।
अन्तस में कुछ और है, बाहर है कुछ और ।
उलझन में यह जिंदगी, कहाँ सत्य का ठौर ।।
दो मुख का यह आदमी, क्या इसका विश्वास ।
इसके अंतर में सदा, छल करता है वास ।।
सुशील सरना / 21-12-24