दोहा पंचक . . . . भूख
दोहा पंचक . . . . भूख
भूख लगे जब पेट को , कब भाता कुछ और ।
भूखे की बस चाहना, मिल जाऐं दो कौर ।।
क्षुधित उदर की वेदना, क्या जानें संसार ।
आँखों में बस तैरती, रोटी की मनुहार ।।
हर दौलत से है बड़ी, दो रोटी की चाह ।
बड़ी कठिन संसार में, पेट भरण की राह ।।
फुटपाथों पर भूख का, सजा हुआ बाजार ।
दो रोटी के वास्ते, तन बिकता सौ बार ।।
आते- जाते लोग सब, भिक्षुक का संसार ।
हर सिक्के के साथ में, मिले उसे दुत्कार ।।
सुशील सरना / 8-10-24