दोहा पंचक. . . नारी
दोहा पंचक. . . नारी
नारी तेरे भाग्य में, सुख का सदा अभाव ।
जग जन्ती तू कोख से, जग ही देता घाव ।।
नारी तूने कर दिया, नर पर तन मन वार ।
बदले में तुझको मिला, दृग जल का उपहार ।।
अबला सबला हो गई, कहने की है बात ।
जाने कितने सह रही, घुट-घुट वो आघात ।।
नर से नारी माँगती, बस थोड़ा सा प्यार ।
छलता उसकी सादगी , यह छलिया संसार ।।
नारी नर का मान है, उसका है संसार ।
वो उसकी है आत्मा, वो उसका शृंगार ।।
सुशील सरना / 4-1-24