दोहा पंचक. . . . . नटखट दोहे
दोहा पंचक. . . . . नटखट दोहे
कुछ शर्मीली शोखियाँ, कुछ मेरे जज्बात ।
आग लगाने आ गई, उस पर यह बरसात ।।
काबू में कैसे रहे, फिर दिल का तूफान ।
भीगे जब बरसात में, ख्वाबी सा अरमान ।।
मुख मयंक पर मेघ की, रास करे बौछार ।
केशों से मुक्ता गिरे, अधर लगें अंगार ।।
करती है बरसात में, नजर बहुत आखेट ।
मारे शरम परिधान को, गौरी रही लपेट ।।
मेघों की अठखेलियाँ, रिमझिम सी बरसात ।
भीगे अधरों से करें, अधर मधुर उत्पात ।।
सुशील सरना / 6-8-24