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15 Nov 2024 · 1 min read

दोहा पंचक. . . . . नजर

दोहा पंचक. . . . . नजर

नजरों से नजरें करें, नजरों का व्यापार ।
नजरों का यह सिलसिला , दिल छलता सौ बार ।।

झुकी नजर में है निहित, अनबोली वो बात ।
जिसकी मद में धड़कनें, धड़कीं सारी रात ।।

जाने कैसे कट गई, नजर पाश में रात ।
अफसाना वो रात का, समझा नहीं प्रभात ।।

अद्भुत होता है बहुत, नजर नजर का प्यार ।
नजर करे इंकार फिर , नजर करे इकरार ।।

गुपचुप नजरों ने किया, नजरों से संवाद ।
हृदय कुंज में रह गए, बन कर वो पल याद ।।

सुशील सरना / 15-11-24

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