दोहा पंचक. . . . . तकदीर
दोहा पंचक. . . . . तकदीर
थोड़ा खाना बांटकर, थोड़ा रखना पास ।
कोई भूखा ना रहे, करना यह अरदास ।।
अन्तस में रहता सदा, इच्छाओं का नीर ।
केवल इच्छा मात्र से , कब बदली तकदीर ।।
भाग्य पृष्ठ पर कर्म की, कलम लिखे तहरीर ।
इच्छाओं के बुलबुले, कब बदलें तकदीर ।।
बिन्दु से रेखा बने, रेखा से दो छोर ।
दो छोरों पर जिंदगी, ढूँढे सुख की भोर ।।
भाग्य भरोसे कब भला, करवट ले तकदीर ।
बिना करम के जिंदगी, जैसे रहे फकीर ।।
सुशील सरना / 8-9-24