दोहा पंचक. . . . जिंदगी
दोहा पंचक. . . . जिंदगी
रंग बदलती जिन्दगी, मौसम के अनुरूप ।
कभी सुहाती छाँव तो, कभी सताती धूप ।।
क्यों आखिर यह जिंदगी, चाहे जीना ख्वाब ।
हर ख्वाहिश का अंत वो, जाने सिर्फ अजाब ।।
अनजाने से मोड़ हैं, अंतहीन है राह ।
किस गफलत में जिंदगी, दुख से करे निबाह ।।
शूलों से भरपूर है, जीवन की यह राह ।
दुख से मुश्किल हो गया, करना अब निर्वाह ।।
सिन्धु क्षितिज पर जिंदगी, नभ से करे सवाल ।
कब टूटेगा तू बता, सुख – दुख का यह जाल ।
सुशील सरना /11-10-24