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27 Dec 2024 · 1 min read

दोहा पंचक. . . इच्छा

दोहा पंचक. . . इच्छा

इच्छाएं बेअंत हैं, लेकिन साँसें अल्प ।
जीवन कैसे दीर्घ हो , इसका नहीं विकल्प ।।

इच्छाओं के बुलबुले, कब बदलें तकदीर ।
देना बस बेचैनियाँ, इनकी है तासीर ।।

इच्छाओं के जाल में, फंसा हुआ इंसान ।
संतोषी माधुर्य का, उसे नहीं है भान ।।

इच्छाओं की आँधियाँ, आशाओं के ढेर ।
क्या समझेगी जिन्दगी, साँसों का यह फेर ।।

इच्छाओं के तीर पर, आभासी हैं गाँव ।
इसके दलदल में सदा, धँसते जाते पाँव ।।

सुशील सरना / 27-12-24

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