दोहा पंचक. . . इच्छा
दोहा पंचक. . . इच्छा
इच्छाएं बेअंत हैं, लेकिन साँसें अल्प ।
जीवन कैसे दीर्घ हो , इसका नहीं विकल्प ।।
इच्छाओं के बुलबुले, कब बदलें तकदीर ।
देना बस बेचैनियाँ, इनकी है तासीर ।।
इच्छाओं के जाल में, फंसा हुआ इंसान ।
संतोषी माधुर्य का, उसे नहीं है भान ।।
इच्छाओं की आँधियाँ, आशाओं के ढेर ।
क्या समझेगी जिन्दगी, साँसों का यह फेर ।।
इच्छाओं के तीर पर, आभासी हैं गाँव ।
इसके दलदल में सदा, धँसते जाते पाँव ।।
सुशील सरना / 27-12-24